क्यों हैं ऐसा की लौटते परिंदों का चहकना मुझे सुलाता
नहीं हैं
बारिश के पानी का बूंद बूँद गिरना मुझे हँसाता नहीं
हैं
क्यू हैं आज होली के रंगों मे कोई रंग मुझे लगाता
नहीं हैं
ये उम्र का कौन सा मौसम हैं की ये मौसम मुझे सुहाता
नहीं हैं
क्यू हुआ ऐसा की ये नरम हवाये मेरे
जुल्फों को अब सहलाती नहीं हैं
गर्मी की वो खामोश दोपहर मुझे अब डराती भी नहीं हैं
क्यों पर्वतों के पार से उठता सूरज मुझे अब जगाता नहीं
हैं
गीतों की मधुर किसी धुन पर दिल आज गुनगुनाता क्यों नहीं
हैं
सागरों की उठ रही लहरों से कोई तरंग
मन मे उठती नहीं हैं
फूलों के खिलने से क्यू अब मन मे कोई कली खिलती ही नहीं
हैं
वो लोगों की भीड़ मुझे अब सताती भी नहीं हैं
दरख्तों की छाव क्यू अब मुझे बुलाती तक नहीं हैं
क्यू हैं ऐसा की तेरे जाने के बाद कोई जहन को मेरे
लुभाता नहीं हैं
तन्हा यू हुआ की जिंदगी मे अब कोई आता नहीं हैं
क्या खता किया हैं मैंने की अब कोई
मुझे रुलाता तक नहीं हैं
क्यू हुआ ऐसा की जिंदा तो हूँ पर कोई उम्मीद जताता ही नहीं हैं
No comments:
Post a Comment