तुम प्रेम की छाया हो
मैं क्रोध मे गरजता बादल
तुम शक्ति का तेज प्रबल हो
मैं अहंकार मे चूर एक निर्बल
तुम सीता सी पावन हो
मैं कर्म धर्म का नाशी
तुम राधा का प्रेम सकल हो
मैं छद्म कामना का ग्राही
तुम ही रुक्मिणी सी संगिनी हो
मैं जीवन से भटका राही
हे प्रियतम यदि तुम्हारे मन मे
पुष्प प्रेम के शेष बचे हैं
तो अर्पित कर दो मुझको
फिर से अपना ये तन भी मन भी
शंकर सा विष पीकर मैं
धनुष तोड़ के दिखलाऊँगा
यदि प्रेम मे हाँ कह दो तो
प्रेम-मर्यादा मे बंध कर
राम तुम्हारा बन जाऊंगा
यदि मन मे जगह बची हो तो
मैं कृष्ण सा प्रेमी बन जाऊंगा
हैं प्रियतम प्रेम प्रणय तुम
सकल जगत मे सर्वोत्तम तुम
यदि पुष्प प्रेम के शेष बचे हैं
तो करूंगा मैं तेरा ही अभिनंदन
मेरी अभिलाषा हैं की मैं भी
अब तुम्हारा शंकर बन जाऊ
स्वयं बदल राम सा दिखलाऊ
कृष्ण सा तेरी बाहों का मैं शृंगार बन इठलाऊ