Monday, April 3, 2023

प्रेम पुष्प

 तुम प्रेम की छाया हो

मैं क्रोध मे गरजता बादल

तुम शक्ति का तेज प्रबल हो

मैं अहंकार मे चूर एक निर्बल

तुम सीता सी पावन हो

मैं कर्म धर्म का नाशी

तुम राधा का प्रेम सकल हो

मैं छद्म कामना का ग्राही

तुम ही रुक्मिणी सी संगिनी हो

मैं जीवन से भटका राही

 

हे प्रियतम यदि तुम्हारे मन मे

पुष्प प्रेम के शेष बचे हैं

तो अर्पित कर दो मुझको

फिर से अपना ये तन भी मन भी

शंकर सा विष पीकर मैं

धनुष तोड़ के दिखलाऊँगा

यदि प्रेम मे हाँ कह दो तो

प्रेम-मर्यादा मे बंध कर

राम तुम्हारा बन जाऊंगा

यदि मन मे जगह बची हो तो

मैं कृष्ण सा प्रेमी बन जाऊंगा

 

हैं प्रियतम प्रेम प्रणय तुम

सकल जगत मे सर्वोत्तम तुम

यदि पुष्प प्रेम के शेष बचे हैं

तो करूंगा मैं तेरा ही अभिनंदन  

मेरी अभिलाषा हैं की मैं भी

अब तुम्हारा शंकर बन जाऊ

स्वयं बदल राम सा दिखलाऊ

कृष्ण सा तेरी बाहों का मैं शृंगार बन इठलाऊ  

हे साना मैं तेरा साधक बन जाऊ