Saturday, March 4, 2023

बेरंग मौसम

क्यों हैं ऐसा की लौटते परिंदों का चहकना मुझे सुलाता नहीं हैं

बारिश के पानी का बूंद बूँद गिरना मुझे हँसाता नहीं हैं

 

क्यू हैं आज होली के रंगों मे कोई रंग मुझे लगाता नहीं हैं

ये उम्र का कौन सा मौसम हैं की ये मौसम मुझे सुहाता नहीं हैं

 

क्यू हुआ ऐसा की ये नरम हवाये मेरे जुल्फों को अब सहलाती नहीं हैं

गर्मी की वो खामोश दोपहर मुझे अब डराती भी नहीं हैं

 

क्यों पर्वतों के पार से उठता सूरज मुझे अब जगाता नहीं हैं

गीतों की मधुर किसी धुन पर दिल आज गुनगुनाता क्यों नहीं हैं

 

सागरों की उठ रही लहरों से कोई तरंग मन मे उठती नहीं हैं

फूलों के खिलने से क्यू अब मन मे कोई कली खिलती ही नहीं हैं

 

वो लोगों की भीड़ मुझे अब सताती भी नहीं हैं

दरख्तों की छाव क्यू अब मुझे बुलाती तक नहीं हैं

 

क्यू हैं ऐसा की तेरे जाने के बाद कोई जहन को मेरे लुभाता नहीं हैं

तन्हा यू हुआ की जिंदगी मे अब कोई आता नहीं हैं   

 

क्या खता किया हैं मैंने की अब कोई मुझे रुलाता तक नहीं हैं

क्यू हुआ ऐसा की जिंदा तो हूँ पर कोई उम्मीद जताता ही नहीं हैं 

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