Thursday, December 29, 2022

निशानी

उस गली के एक घर मे रहता था कोई

उस उम्र का एक मशहूर शौक था कोई

उन गरम लफ्जों को यूं सँजोया हैं अब तक   

जैसे ठंड की सुबह मे धूप सेकता हैं कोई

 

भागती जिंदगी का एक रुका लम्हा हैं कोई

भीगती आँखों का बहा हुआ आँसू हैं कोई

गुजरे हुए उसके लम्हों को छुपाया हैं दिल मे  

जैसे साँसों को महफूज रखता हैं कोई

 

उसके एहसास के आस मे जिंदा हैं कोई

जैसे किसी वादे का कर्ज उतारता हैं कोई

अब तो सफर कट गया सफर मे ऐसे

जैसे साहिलो पर पहुच कर पता पूछता हैं कोई  

 

अब जिंदगी और उस शौक मे जीता हैं कोई

जैसे किसी की दी हुई अमानत संभालता हैं कोई

उसको महसूस करने की वो उम्र अभी भी हैं मुझ मे  

जैसे दी हुई निशानी उंगलियों मे पहनता हैं कोई

 

‘अभिषेक’


Tuesday, December 27, 2022

उम्मीद

कुछ रास्ते ऐसे भी होते हैं

जिनकी कोई मंजिल नहीं होती

जिन पर केवल चलते जाना होता हैं

इस उम्मीद के साथ की

फलक के पार  

तारों की जमीन पर

कोई जन्नत तो होगी

जो सपनों सा दिखेगी  

  

कुछ सफर ऐसे भी होते हैं

जिनके कोई हासिल नहीं होते हैं

जिनको केवल तय करना होता हैं

इस कश्मकश के साथ की

दुनिया की इस भीड़ मे  

कोई तो मिलेगा

जो हमदर्द बनेगा

अपनों सा दिखेगा


अभिषेक 

 


Saturday, December 17, 2022

शायर

जो कभी आम थे वो दिल के खास हो गए

जो हासिल ना हो सके वो एहसास हो गए

कभी जो जुड़ गए तो फ़साना बना दिया    

और चल दिए तो वो शायरी हो गए

वो हर एक शायरी एक मोहब्बत की निशानी हैं

दिल टूँटते रहे और हम शायर मशहूर हो गए

 

मेरे मशहूर होने मे तेरा कुछ तो हाथ होगा

गमों के इस सफर मे कुछ तो याद होगा

या हमसे दिल्लगी के सफर मे मगरूर हो गए

शायरी का हमारा यूं तो कोई इरादा नहीं था

लेकिन हम पिघलते रहे आप पत्थर हो गए

वो पहली शायरी एक खास मोहब्बत की निशानी हैं

फिर दिल टूँटते रहे और शायर हम मसरूफ़ हो गए

 

तेरे जाने के बाद जो आए वो तुझ जैसे ही थे

मुझे मशहूर करने की जिद्द ले ही बैठे थे

फिर वो सारे कभी फ़साना तो कभी शायरी हुए

लबजो की इन्ही कारीगरी से हम शायर हो गए

वो हर एक शायरी एक मोहब्बत की निशानी हैं

दिल टूँटते रहे और देखो हम शायर हम मशहूर हो गए

 

‘अभिषेक’

बेवजह

अपनों के इस सफर मे

सपनों के उस शहर मे

आरजू की कीमत पर

खुद को बेवजह ही लूटा कर

क्या खोया और क्या पाया

इसका हिसाब अब कौन करे

 

अब कौन करे इसका हिसाब

की अपनों के मिलने-बिछड़ने मे

उसके प्यादे सी इस जिंदगी मे

उसे मौत के कितने करीब

लाकर खड़ा किया हैं

और मौत हैं

की मुस्कुराकर मासूमियत से

मानो इंतज़ार कर रही हो  

जैसे उसे भी मालूम हैं की

इस बेवजह सी कोशिश का

अंतिम वाला अंत वो ही हैं

और इस प्यादे सी जिंदगी

यूं ही खामखा बेवजह

साँसों के दरमियान बनी हुई हैं

 

‘अभिषेक’

 

 


Wednesday, December 14, 2022

शहर

उस शहर का वो एक खास दौर था

जब महफिलों की उस चकाचौंध मे

जब लोगों की जिंदा-दिल बस्तियों मे

कई पराए भी अपने बन के मिले थे

और जब अपने भी अपने ही हुआ करते थे

आज उस शहर की बहुत याद आती हैं


समय सी भागती इस तेज जिंदगी मे

अब क्या बताऊ मकानों का सिर्फ जंगल बचा हैं

जहा इस भीड़ की गूँजती आवाजों मे

पसरे सन्नाटे की अजीब उलझनों मे

उस कठिनाई को बयान करना हैं

जब शहर के अक्स मे खुद को अकेले ही

ढूँढने का जतन भी बेमानी सा लगता हैं

“अभिषेक”