Thursday, November 17, 2022

मैं बन जाऊ

तू मेरी कविता मैं तेरा कवि बन जाऊ

तू फूल बने तो मैं तेरी महक बन जाऊ

तू गर जिंदगी और इबादत बने

तो बन के दुआ मैं सितारों तक मिल आऊ

 

तू सुबह बने तो मैं ओंस की बूंद बन जाऊ

तू शाम बने तो लौटते परिंदों का घर बन जाऊ

तू अगर साथ चलने का वादा करे

तो तेरे साथ चाँद पर एक सपना बनाऊ

 

तू बूँद बने तो मैं धार बन जाऊ

तू सच बने तो मैं तेरा सब झूठ सह जाऊ

गर तू झील बने सपनों की

तो किनारों की हवा बन मैं इठलाऊ

 

तू वक्त बने तो मैं तेरा पल बन जाऊ

तू विनय करे तो मैं याचक बन मर जाऊ

नदी की गर अविरल धार बने तू

बन के सागर तुझमे ही फिर मिल जाऊ

 

तू प्रेम करे तो मैं प्रणय बन जाऊ

तू राह तके तो मैं मंजिल बन जाऊ

तुझ को गर ख्वाहिश भर हो

तो भागीरथ बन गंगा को पृथ्वी पर ले आऊ 


'अभिषेक'

Wednesday, November 16, 2022

तू ना मिला

तुझे पढ़ने की चाह मे नया एक एहसास मिला

तुझे पाने की आस मे शब्दों को नया साज मिला

कुछ बात थी तेरी उस मुस्कुराहट मे

नशा क्या खूब हुआ पैमाना क्या खूब मिला   

 

उस गली के मोड़ पे एक लम्हा तुझ सा मिला

तू राह तो कभी तू ही मंजिल पे खड़ा मिला

एक उम्र बिताई हैं तेरे उस शहर मे

हासिल सब किया, हमसफ़र कोई न मिला

 

वो चाँद की रात मे बेतकल्लुफ़ सा इंतज़ार मिला    

तेरी बातों के सियाही मे मेरा पन्ना गुमनाम मिला

जिंदगी गुजर गई तेरे इजहार मे

न तो तेरी हाँ मिली ना ही तेरा संसार मिला  

 

तू ना मिला तो ये तेरा ग़म मिला

बेअसर दुआवो मे सिर्फ तेरा अक्स मिला

उस पुरानी किताब सा है ये इश्क तेरा

याद तो सब किया, साथ कुछ ना मिला      

 

“अभिषेक”

Saturday, November 5, 2022

परम-सत्य

तू कृष्ण का हैं चक्र सुदर्शन

तू ही रुद्र का अवतारी  हैं

शत्रु को जो भय-कंपित कर दे

तू ही वो भीषण प्रलयंकारी हैं

 

वीरों की तलवार अमर

तू ही आदित्य का शौर्य प्रखर

और प्रलय से जो आखेट करे

तू ही वो नर-रणसंहारी हैं   

 

राम की हैं मर्यादा तू

तू ही लक्ष्मण सा परछाई हैं

काल-जगत के पार रहे तू

तू ही अविरल अविनाशी हैं

 

बुद्ध का तू ज्ञान निखर

तू ही महावीर सा त्यागी हैं

सब मे व्याप्त रहे तू

तू ही वो अपरम-पारी  हैं


 

तू रणचंडी का काल-शिखर

तू ही पार्वती सा अनुरागी हैं

हार-जीत के पार रहे तू

तू ही वो योगी निष्कामी हैं

 

तू जीवन की अंतिम अभिलाषा

तू ही वो पहली ख्वाहिश हैं

जल-नभ-थल के पार रहे तू

तू ही आनंद की वो तरुणाई हैं

 

तू पिता का प्रेम अमर

तू ही ममता की गहराई हैं

परम ब्रम्ह की मूर्ति तू

तू ही ईश्वर की सच्चाई हैं