राष्ट्र की गुहार को
सिंह की दहाड़ को
न्याय की पुकार पे
आज तू ये जान ले
युद्ध को स्वीकार ले
की कर्म तेरे वश मे हैं
धर्म तेरे अक्स मे हैं
धनुष उठा के आज तू
युद्ध को स्वीकार ले
जीत वश मे हैं नहीं
हार स्वीकार्य हैं नहीं
कर्म तेरी शक्ति हैं
धर्म तेरी भक्ति हैं
आज तू ये जान ले
युद्ध को स्वीकार ले
कोई नही सगा तेरा
न हैं कोई अपना जहा
बस तू ही तू हैं यहा
साहसों की डोर पे
कर्म के वाण को
पार्थ तू निकाल दे
कि युद्ध तेरे वश मे हैं
युद्ध को स्वीकार ले
ये युद्ध धर्म ही का हैं
भोग के लिए न लड़
युद्ध ये कर्म ही से हैं
पार्थ तू आगे निकल
हार जीत मे नहीं
कर्म मे हैं शांति
आज तू ये जान ले
और युद्ध को स्वीकार ले
शांति कोई विकल्प नहीं
युद्ध कोई हल नहीं
धर्म की रक्षा के लिए
आज तू बस ये कर्म कर
की जन्म क्यू हुआ तेरा
आज तू ये जान ले
साहसों के उन्माद पे
युद्ध को स्वीकार ले
तू हैं सदा से यहा
आज तू ये जान ले
शरीर नहीं ये आत्मा
ये ही अखिल विश्वात्मा
काट सके न शस्त्र जिसे
जला सके न आग जिसे
वायु जल से हैं परे
तो मृत्य भय क्यू हैं तुझे
तू ही हैं वो अमरात्मा
तीर को तू भेद ले
युद्ध को स्वीकार ले
जीत मैं हैं यश तेरा
हार मे हैं स्वर्ग तेरा
कर्म ही हैं स्वर्ण तेरा
कर्म-फल को भूल के
धर्म के लिए तू आज
बंधनों को तोड़ पार्थ
आज तू ये जान ले
युद्ध को स्वीकार ले
जब धर्म का नाश हो
अधर्म का विकास हो
तो कृष्ण के रूप मे
मैं हूँ आज यहा खड़ा
जहा न कोई मुझसे बड़ा
मैं आज जीत लाऊँगा
धर्म के विनाश को
अधर्म के प्रवास को
पार्थ जीत जाऊंगा
मैं कर्म के विश्वास को
आज तू ये जान ले
युद्ध को स्वीकार ले
मैं ही मैं तुझ मे हूँ
इसमे हूँ और उसमे हूँ
आज तू ये जान ले
कुछ नहीं मेरे परे
की करने योग्य कुछ नहीं
मैं हूँ अखिल परमात्मा
फिर भी कर्म को कीये रहा
पांचजन्य बजा रहा
मैं ये तुझे बता रहा
मृत्यु-भय के पार जा
गाँडीव उठा के आज
कर्म-सिंधु मे डूब जा
आज तू ये जान ले
युद्ध को स्वीकार ले