Friday, January 6, 2023

रणक्षेत्र

 रुद्र सा क्रोध लिए जब मन विचलित हो उठता हैं

जब नव-चेतना से मानव साधना कर तपता हैं  

जब वीर लिए रणचंडी का आशीर्वाद जग जाता हैं   

क्रांति साहस का तब ही अंतिम पड़ाव बन पाता हैं

 

जब प्रथम समाधि कर नर नव-जागृति पाता हैं

दया-धर्म-शील उसको कर्मभूमि का रस्ता दिखलाता हैं

कर्म की अग्नि प्रचंड मे तब तम बिखर जाता हैं

नर की अमिट प्रसिद्धि का जगत गुण गाता हैं  

 

पौरुष की अंतिम ज्वाला रणभूमि मे ही दिखती हैं

रण मे, मन मे नव चेतना संचित हो जग उठती हैं

वीरों की अतुलित परीक्षा विघ्नों मे ही होती हैं

शत्रु के भीषण प्रहार से ही निर्भयता मन मे जगती हैं

 

सत्य यही हैं की रण मन का ही विस्तार होता हैं

जिसने मन मे ठान लिया वही विजेता बनता हैं

जब मानव मन के डर पर विजय पा जाता हैं

तब रणक्षेत्र, कुरुक्षेत्र मे वो ही अर्जुन बन लड़ पाता हैं

 

‘अभिषेक’

Monday, January 2, 2023

जवाब दो

वो शहरों की सड़कों पर भागते मुर्दा लोग

लिबास को कफन की तरह पहनते और ढोते लोग

दरख्तों के साये मे बैठ कर मुसाफिरों को कोसते लोग

जिंदगी की तलाश मे साँस लेते वो खामोश लोग

तंग आ चुका हूँ मैं अब की इस शहर को हुआ क्या हैं

जिंदा हो तो जिंदगी कहा हैं

कोई तो अब मिसाल दो कोई तब ख्याल दो

की तुम जिंदा हो मुर्दा नहीं, कुछ तो अब जवाब दो

इन मुरदों की बस्तियों मे

मेरे जगाने का एक तो मुझे अब फायदा दो

कोई तो अब जवाब दो

सिर्फ तुम

तेरे जाने के बाद इस मकान के  

कमरों के हर कोने-कोने  मे

तेरी उन यादों को ऐसे ढूँढता हूँ

की कही तो तुमने मेरे लिए

कुछ जतन से छोड़ा होगा  

जिसे उठा कर मैं हाथों से

सीने पे लगा कर

तेरे आने का इंतज़ार कर सकु

 

पर ये खामोश कमरे और लापरवाह दीवारे  

तुम्हारी यादों के साये से बेखबर क्यू हैं

क्यू ऐसा हैं की तुमने

इस बार मेरे लिए कुछ भी नहीं छोड़ा हैं  

या ऐसा तो नहीं किया तुमने

कि हमे ही छोड़ कर चली गई

 

बिस्तर के पीछे गिरे हुए तुम्हारे उस बाल को

अभी भी मैंने झाड कर बाहर फेका नहीं हैं

की कही तुम कभी लौट कर यहा आई

तो अमानत मे तुम्हें कुछ तो दिखा सकु

 

वो मेरी पॉकेट मे तुम्हारा दिया हुआ

एक रुमाल अभी भी पड़ा हैं

जिसे मैंने अभी तक साफ नहीं किया हैं

की अगर कही से तुम आई

तो रुकने का कुछ बहाना तो रहे

 

मेरी एक चाहत तुम भी ले गई हो

बहुत जतन से रखना उसे तुम  

की कभी हम फिर कही मिले

तो गुजारे लम्हों की कोई तो निशानी रहे   

 

तुम्हारे लगाए हुए पौधे

अभी भी खड़े हैं तुम्हारे इंतज़ार मे

मैं भी रोज उन्हे पानी दे देता हूँ

की कभी तुम अगर आओ तो

कोई मेरे मेहनत की तारीफ तो तुमसे करे

 

मौसम बदल रहा हैं

अब उन पौधों मे

फूल आने लगे हैं

उन फूलों की खुशबू  

को इत्र बना के साथ रखता हूँ

की कही तुम पास से गूजरों

तो उनकी खुशबू से ही सही

हमे पहचान तो सकोगी  

 

अब तो लौट आओ की

वो पौधे और वो तुम्हारा रुमाल

वो फूलों का हार और तुम्हारे बाल

तुम्हारे इंतज़ार मे

अपनी साँसों के साथ

संभाल के रखा हैं

इन सासों के रुकने से पहले

एक दफा ही सही आ जाना

और कम से कम ये देख जाना

की मैंने अपनी इस जिंदगी

को तुम्हारे काबिल बना कर

जीना सीख लिया हैं की नहीं