Friday, January 6, 2023

रणक्षेत्र

 रुद्र सा क्रोध लिए जब मन विचलित हो उठता हैं

जब नव-चेतना से मानव साधना कर तपता हैं  

जब वीर लिए रणचंडी का आशीर्वाद जग जाता हैं   

क्रांति साहस का तब ही अंतिम पड़ाव बन पाता हैं

 

जब प्रथम समाधि कर नर नव-जागृति पाता हैं

दया-धर्म-शील उसको कर्मभूमि का रस्ता दिखलाता हैं

कर्म की अग्नि प्रचंड मे तब तम बिखर जाता हैं

नर की अमिट प्रसिद्धि का जगत गुण गाता हैं  

 

पौरुष की अंतिम ज्वाला रणभूमि मे ही दिखती हैं

रण मे, मन मे नव चेतना संचित हो जग उठती हैं

वीरों की अतुलित परीक्षा विघ्नों मे ही होती हैं

शत्रु के भीषण प्रहार से ही निर्भयता मन मे जगती हैं

 

सत्य यही हैं की रण मन का ही विस्तार होता हैं

जिसने मन मे ठान लिया वही विजेता बनता हैं

जब मानव मन के डर पर विजय पा जाता हैं

तब रणक्षेत्र, कुरुक्षेत्र मे वो ही अर्जुन बन लड़ पाता हैं

 

‘अभिषेक’

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