Thursday, December 29, 2022

निशानी

उस गली के एक घर मे रहता था कोई

उस उम्र का एक मशहूर शौक था कोई

उन गरम लफ्जों को यूं सँजोया हैं अब तक   

जैसे ठंड की सुबह मे धूप सेकता हैं कोई

 

भागती जिंदगी का एक रुका लम्हा हैं कोई

भीगती आँखों का बहा हुआ आँसू हैं कोई

गुजरे हुए उसके लम्हों को छुपाया हैं दिल मे  

जैसे साँसों को महफूज रखता हैं कोई

 

उसके एहसास के आस मे जिंदा हैं कोई

जैसे किसी वादे का कर्ज उतारता हैं कोई

अब तो सफर कट गया सफर मे ऐसे

जैसे साहिलो पर पहुच कर पता पूछता हैं कोई  

 

अब जिंदगी और उस शौक मे जीता हैं कोई

जैसे किसी की दी हुई अमानत संभालता हैं कोई

उसको महसूस करने की वो उम्र अभी भी हैं मुझ मे  

जैसे दी हुई निशानी उंगलियों मे पहनता हैं कोई

 

‘अभिषेक’


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