तुझे पढ़ने की चाह मे नया एक एहसास मिला
तुझे पाने की आस मे शब्दों को नया साज मिला
कुछ बात थी तेरी उस मुस्कुराहट मे
नशा क्या खूब हुआ पैमाना क्या खूब मिला
उस गली के मोड़ पे एक लम्हा तुझ सा मिला
तू राह तो कभी तू ही मंजिल पे खड़ा मिला
एक उम्र बिताई हैं तेरे उस शहर मे
हासिल सब किया, हमसफ़र कोई न मिला
वो चाँद की रात मे बेतकल्लुफ़ सा इंतज़ार मिला
तेरी बातों के सियाही मे मेरा पन्ना गुमनाम मिला
जिंदगी गुजर गई तेरे इजहार मे
न तो तेरी हाँ मिली ना ही तेरा संसार मिला
तू ना मिला तो ये तेरा ग़म मिला
बेअसर दुआवो मे सिर्फ तेरा अक्स मिला
उस पुरानी किताब सा है ये इश्क तेरा
याद तो सब किया, साथ कुछ ना मिला
“अभिषेक”
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