Monday, October 24, 2022

ज्वार

 उठ रहा हैं ज्वार फिर क्यूँ के चेतना के पार से

जल रहा हैं आज तन क्यों स्वांस के प्रहार से

 

सुलग उठा हैं आज मन क्यों प्रज्ञा के प्रतिकार से

आ रही हैं आज क्यों फिर, ये रौशनी अंधकार से

 

युवा बना हैं आज फिर उम्र के ढलान पे

धधक उठी हैं आग फिर पानी के प्रवाह पे

 

रक्त हुआ हैं चाप फिर शोषितो के अन्याय पे

रोको ना मुझे कोई, अब क्रांति हैं उफान पे

 

मार्ग तू कर प्रसस्त, आदर्श के स्वभाव से 

मुक्त हो जा आज तू , शासको  के उदभाव से

 

मृत्यु-भय को रोक दे तू, वीरता के उन्माद से

युद्ध को स्वीकार तू, अब स्व-साहसिक प्रयास से

 

बन्धनों को तोड़ दे तू, अब साहसो के प्रवाह से

मुक्त हुआ हैं आज तु, जो प्रलय के प्रभाव से


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