Saturday, August 25, 2012

मैं दलित हूँ


 
                             

राजा, पंडित, पुजारियों  ने मुझको अछूत बतलाया हैं
इनका कचड़ा मैं ढोता, फिर मेरा क्यूँ उपहास उड़ाया हैं 
कुत्ते को तो पूरी रोटी दे देते, मुझको आधा खिलवाया हैं
सड़क, चौराहे, नाली, कुड़ो में घुसकर,  इनको  स्वच्छ बनवाया हैं
इनके धर्म,  धर्मग्रंथो ने फिर भी, मुझको खुल के नीच बताया हैं

मेरा तो परछाई पड़ने से, इनके धर्म भ्रष्ट हो जाते हैं
इनके माँ बापों का मैला मुझसे फिर क्यूँ  उठवाते हैं 
गाय को हाय ये माँ माने, मुझको पशुता से जुड़वाते  हैं
पत्थरो  को भी देव बनाये, मुझको कोड़ो से पिटवाते हैं
वृच्छो को भी ये पूजते , मुझको संवेदन शुन्य बताते हैं
मेरी व्यथा को ना माने, अपनी व्यथा पर  मुझको तड़पाते   हैं

मानव को  तो ये  मानव ना माने, मानवता का पाठ हमे पढाते हैं
हमे असभ्य ये कहते,  अपने को सभ्यता का हिस्सा बतलाते  हैं
खुद को सर्व श्रेष्ठ मानते, मेरा मान मर्दन क्यूँ फिर करवाते  हैं
मैं दलित कुचला, शोषित , अब तक मुझको धिक्कारा हैं
भारत के गौरव की बाते करते, मुझको क्यूँ  पीड़ा पहुचाया हैं

आधी रोटी मैं खाता, आधा पर  मेरा पेट नहीं
पूरी रोटी  मैंने जो खाली, दुनिया की फिर खैर नहीं
मान मेरा एहसान की, मैंने तेरा अब तक  काम  किया
राजा पंडित का मैंने फिर भी हर दम  सम्मान दिया 
धैर्य,सयम स्वभाव हैं मेरा, मैं तो  मजबूर नहीं 
तेरी सेवा मैं करता, मैं अब तो कमजोर नहीं
उठ, जाग गया मैं भी  देखो , मुझको अब सम्मान चाहिए
गाये पत्थरो, वृच्छो को पूजो, मुझको भी मेरा गौरव चाहिए

1 comment: