फिर एक शाम ने मुझे आवाज़ दी,
फिर से उस दर्द ने मुझे पुकारा.
कई मोड़ो से निकल गुजरा मैं,
बहुत पीचे था वो किनारा,
वो तन्हाई ,वो तुम्हारे गम का साथ
वो रात भर तुम्हारी यादो की बात,
सबकुछ तो था तुम्हारी चाह में
फिर भी भटक गया मैं क्यों राह में
इस शाम ने मुझे क्यों बुलाया
उस शाम के दर्द से क्यों मिलाया,
शाम तो रोज़ आती हैं मगर
पर इस शाम ने मुझे क्यों रुलाया
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