Wednesday, December 14, 2022

शहर

उस शहर का वो एक खास दौर था

जब महफिलों की उस चकाचौंध मे

जब लोगों की जिंदा-दिल बस्तियों मे

कई पराए भी अपने बन के मिले थे

और जब अपने भी अपने ही हुआ करते थे

आज उस शहर की बहुत याद आती हैं


समय सी भागती इस तेज जिंदगी मे

अब क्या बताऊ मकानों का सिर्फ जंगल बचा हैं

जहा इस भीड़ की गूँजती आवाजों मे

पसरे सन्नाटे की अजीब उलझनों मे

उस कठिनाई को बयान करना हैं

जब शहर के अक्स मे खुद को अकेले ही

ढूँढने का जतन भी बेमानी सा लगता हैं

“अभिषेक”

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