Thursday, October 6, 2022

कुछ कहना चाहता हूँ

कुछ कहना चाहता हूँ

उस पुरानी किताब के उस पन्ने को

फिर से पढ़ना चाहता हूँ


पन्ने बदले तेरा शहर छोड़ा

शौक-ए आरजू भी बदल कर देख लिया

पर ना भुला तो वो एहसास

जो आज भी उसी किताब के

एक पन्ने में सजो के रखा हैं


मुकम्मल जिंदगी हैं कि नहीं

ये सांसे तो तय नहीं करती क्यूंकि

जीना सिर्फ पैसो का दीदार ही तो नहीं

और जब दीदार की बात निकली ही हैं

तब उस पन्ने की याद लाजमी ही तो हैं

तुम थी वो एहसास भी था

वो शौक-ए नजर भी थी

जो तुम पे ही आ के रुक जाती थी

आज उन्ही लम्हों को

एक पन्ने में सजो के रखा हैं

और जब लम्हे किसी दिल में संजोये जाये

तब तुम्हारा शुकून-ए-एहसास लाजमी ही तो हैं

-अभिषेक

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