जज्बातों का वो सैलाब जो कभी मुझमे मुझ तक था
वो पिछली बारिश में कुछ धुल सा गया हैं
जिंदगी कुछ इस तरह गुजर रही हैं कि
न दोपहर होती हैं और न अब शाम होती हैं I
आरजू का वो बवंडर जो मुझमे तुझ तक था
वो मेरे आंसूओं में कुछ घुल सा गया हैं
मोहरों की खाली डिब्बो सी हो गयी हैं ये जुस्तजू
न कोई चाल चलता हैं न कोई बाजी होती हैं I
बारिश में मेरा गुनगुनाना जो मुझ में कल तक था
वो आज ग़में जिंदगी में कही खो सा गया हैं
और तन्हाई में अब इस क़दर तन्हा हूँ कि
न कोई हार होती हैं न कोई जीत होती हैं I
गुजरे हुये कल में छुपा एक चेहरा जो तुझ तक था
आज कही समय में धुंधला सा पड़ गया हैं
और वो गए छोड़कर इस हाले मोहब्बत में ऐसे कि
न कोई अब याद करता हैं न कोई अब याद आता हैं I
-अभिषेक
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