Thursday, October 6, 2022

यादें

जज्बातों का वो सैलाब जो कभी मुझमे मुझ तक था

वो पिछली बारिश में कुछ धुल सा गया हैं

जिंदगी कुछ इस तरह गुजर रही हैं कि

न दोपहर होती हैं और न अब शाम होती हैं I


आरजू का वो बवंडर जो मुझमे तुझ तक था

वो मेरे आंसूओं में कुछ घुल सा गया हैं

मोहरों की खाली डिब्बो सी हो गयी हैं ये जुस्तजू

न कोई चाल चलता हैं न कोई बाजी होती हैं I

बारिश में मेरा गुनगुनाना जो मुझ में कल तक था

वो आज ग़में जिंदगी में कही खो सा गया हैं

और तन्हाई में अब इस क़दर तन्हा हूँ कि

न कोई हार होती हैं न कोई जीत होती हैं I

गुजरे हुये कल में छुपा एक चेहरा जो तुझ तक था

आज कही समय में धुंधला सा पड़ गया हैं

और वो गए छोड़कर इस हाले मोहब्बत में ऐसे कि

न कोई अब याद करता हैं न कोई अब याद आता हैं I

-अभिषेक

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