धुप की कड़ी तपिश में
वो तेरा आना
हल्के से कुछ कह के
फिर से गुम हो जाना
याद आती हैं तन्हाई में
मेरी वर्षो की आराधना
तुम ही तो हो
हाँ तुम ही तो हो मेरी साधना
तेरा कुछ नरमी से कहना
और कह के फिर मुझे
एहसासों की महफ़िल में
यूँ तन्हा छोड़ जाना
बा-खुदा जन्नत नहीं तो
और क्या हैं
यूँ रेशमी जज्बातों को
फिर से छेड़ जाती हो
मेरी साधना मुझे
हर पल क्यूँ याद आती हो
"अभिषेक"
No comments:
Post a Comment