मेरी भीगी हुई आवारा चाहतो के
आखिरी मुकाम तुझ में ही सिमट के
आ गए क्यूँ
मेरे जलते हुए अरमानो को
मेरी साँसों के गर्म एहसासों को
तुम छु गए क्यूँ
मेरी बेजान सी पड़ी जिंदगी
मेरी वीरान सी हुई त्रिश्नगी
तुझ में ही लिपट गए क्यूँ
क्यों हुआ की वो अनजान सा दर्द
मेरे अतीत में ही कही खो गया
और रहा गया तो बस तुम्हारा
वो अक्स जिसे मैं जीता हूँ
रोज खुद में ही कही
संजोता हूँ खुद में ही कही
क्यों हुआ ये
क्यों हुआ ये की तुम आये
और फिर ना रहा कुछ आने को,
और ना ही रहा कुछ पाने को
बस रह गया हैं तो तुम ही तुम
और क्यूँ मैं खुद में ही खो गया हूँ
अब न रही वो मंजिलो की वो प्यास
और न ही रही कुछ पाने की वो आस
क्यूँ की तुम में ही हैं वो सब
जिसकी मैं करता था तलाश
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