हार हैं जीत हैं
जिंदगी भी क्या अजीब हैं
हारता हूँ, कभी जीत जाता हूँ l
वक्त की बिसात पे यूँ खूब ही
गिर के उठ जाता हूँ
ये आरजू हैं
एक आस हैं
जीने की प्यास हैं
मौत से मिल कर के
हार के भी जीत जाता हूँ l
तूने हारने को और जीतने को
जिंदगी दिया क्या हैं
मिट गयी सब ख्वाहिशे
मिट कर भी हुआ क्या हैं
जीने की कश्मकश ने
प्यादा बनाया हैं
जो पिट कर के भी
जीत जाता हैं l
रात के पथ में
यूँ गुजरे लम्हों को
एक प्यास ने संजोया हैं
जिन्दा हूँ इसलिए
जिंदगी को जीत जाता हूँ l
जिंदगी तू ख्वाब हैं
आरजू हैं या एक त्रिश्नगी
खामखा जीने की एक वजह हैं
या अधूरे अरमानों की
कभी न रुकने वाली
एक कड़ी हैं
या खुद मुझसे लड़ने वाली
एक अन सुलझी पहेली हैं
जो खुद मुझे से ही
निकलकर मुझमे ख़त्म हो जाती हैं
जिंदगी तू भी खुब हैं
मुझसे हार कर जीत जाती हैं l
मुझे मोहरा बना कर
चाल चल जाती हैं
जिंदगी तू भी नित नए
नए रास्ते दिखा के जाती हैं
रुकता हूँ कहीं
कभी पहुच जाता हूँ
वक्त की साजिशो से
फिर भी ए जिंदगी
जीत जाता हूँ l
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