मेरीआरज़ू के मकबरे से
निकलीदुवाओ की तामिल हो तुम
मेरीसूनी पड़ी जिंदगी की
आहोका सिला हो तुम
मेरीभटकती हुई वीरान जिंदगी
कीपुकार का अंदाज़-ए- बयां हो तुम
तुमही हो मेरी आखिरी मंजिल
जीनेकी वजह भी अब तुम ही हो
हाँतुम ही तो हो पहुंचकर जहा
कुछऔर नहीं पाना चाहता
जीनाचाहता हूँ और तुम्ही पे
फिरखत्म भी होना चाहता हूँ
मेरीगुमनाम साँसों की
भटकतीआरज़ू हो तुम
हाँतुम ही तो हो
मेरीवर्षो की आराधना
हाँतुम ही तो हो मेरी साधना
"अभिषेक"
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